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व्याख्याकार
सद्गुरु अभिलाष साहेब
प्रथम प्रकरण : रमैनी
Kabir Bijak Ramaini 10 in Hindi | कबीर बीजक रमैनी – 10
वासनाओं का त्याग अमृतस्थिति है
राही लै पिपराही बही।
करगी आवत काहु न कही।।१।।
आयी करगी भौ अजगुता।
जन्म जन्म यम पहिरे बूता।।२।।
बूता पहिरि यम कीन्ह समाना।
तीन लोक में कीन्ह पयाना।।३।।
बाँधेउ ब्रह्मा विष्णु महेशू।
सुर नर मुनि औ बाँधु गणेशू।।४।।
बाँधे पवन पावक औ नीरू।
चांद सूर्य बाँधेउ दोउ बीरू।।५।।
साँच मंत्र बाँधे सब झारी।
अमृत वस्तु न जानै नारी।।६।।
*साखी—*
अमृत वस्तु जानै नहीं, मगन भया सब लोय।
कहहिं कबीर कामों नहीं,
जीवहिं मरण न होय।।९।।
Kabir Bijak Ramaini 10 ke word meaning कबीर बीजक रमैनी 10 के शब्दार्थ
राही = कर्मी जीव। करगी = माया। अजगुता = आश्चर्य। अमृत वस्तु = अमर जीव।
Kabir Bijak Ramaini 10 ke भावार्थ | कबीर बीजक रमैनी 10 के भावार्थ
हिलते हुए पीपल के पत्ते के समान चंचल मन, कर्मों की राह पर चलने वाले जीवों को लेकर बह गया। परन्तु यह किसी ने नहीं कहा कि यह माया का आक्रमण है।।१।।
आश्चर्य हुआ कि माया ने आकर जीव को ढक लिया। जन्म-जन्मान्तरों से या कहना चाहिए अनादिकाल से मन रूपी यम ने वासना का शक्तिशाली जामा पहन रखा है।।२।।
अविद्या का बलपूर्ण जामा पहनकर मन सब में समाया हुआ है और त्रिवेणी जीवों के अंतःकरणों में उसी का निरंतर गमनागमन होता रहता है।।३।।
इसने ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सुर, नर, मुनि और गनेश को भी बांध लिया है।।४।।
प्रणायाम साधने वाले योगी, अग्नि पूजक कर्मकांडी, तीर्थादि जल का आचरण करने वाले उपासक, इतना ही नहीं, कर्मयोगी और कर्मसंन्यासी रूपी दो वीरों को भी मन ने बांध रखा है।।५।।
मन:कल्पित शब्दों के मंत्रजाल ने समस्त जीवों को बांध रखा है। नारी बने लोग अमृत वस्तु से अजानकार हैं।।६।।
लोग अमृत वस्तु नहीं जानते, विषय-वासना में डूब रहे हैं। सद्गुरु कबीर कहते हैं कि जीव ही अमृत वस्तु है। न उसमें कामना है और न मृत्यु ;अथवा कामना त्याग देने पर जीव अमृत तत्त्व को प्राप्त हो जाता है ।।१०।।