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व्याख्याकार
सद्गुरु अभिलाष साहेब
प्रथम प्रकरण : रमैनी
Kabir Bijak Ramaini 11 in Hindi | कबीर बीजक रमैनी – 11
भ्रांति और विषय-वासनाओं की नींद तोड़ो
आँधरि गुष्टि सृष्टि भई बौरी।
तीन लोक में लागि ठगौरी।।१।।
ब्रह्मा ठगो नाग कहँ जाई।
देवता सहित ठगो त्रिपुरारी।।२।।
राज ठगौरी विष्णु पर परी।
चौदह भुवन केर चौधरी।।३।।
आदि अंत जाकी जलक न जानी।
ताकि डर तुम काहेक मानी।।४।।
वै उतंग तुम जाति पतंगा।
यम घर कियउ जीव को संगा।।५।।
निम किट जस निम प्यारा।
विष को अमृत कहत गंवारा।।६।।
विष के संग कौन गुण होई।
किंचित लाभ मूल गौ खोई।।७।।
विष अमृत गौ एकै सानी।
जिन जानी तिन विष कै मानी।।८।।
काह भये नर शुद्ध बेशुद्धा।
बिन परिचय जग बुड़न बृद्धा।।९।।
मति के हीन कौन गुण कहई।
लालच लागि आशा रहई।।१०।।
*साखी—*
मुवा है मरि जाहुगे, मुये की बाजी ढोल।
सपन सनेही जग भया,
सहिदानी रहिगौ बोल।।११।।
Kabir Bijak Ramaini 11 | कबीर बीजक रमैनी 11 के शब्दार्थ
गुष्टि = गोष्ठी, सभा। जलक = ब्रह्मा। सहिदानी = पहचान।
Kabir Bijak Ramaini 11 | कबीर बीजक रमैनी 11 के भावार्थ
सभा अंधी है और दुनिया पगली है। सत, रज, तम तीनों गुणों के मनुष्य ठगे जा रहे हैं ।।१।।
ब्रह्मा ठगे गये, नाग ठगे गये और देवताओं के सहित महादेव जी ठगे गये ।।२।।
चौदह भुवनों के चौधरी विष्णु पर राज-काज चलाने की राजनीतिक ठगौरी पड़ी ।।३।।
जिसका आरम्भ और अंत ब्रह्मा नहीं जान सके, उसका भय तुम क्यों मानते हो ! ।।४।।
वह ऊंची अग्नि-शिखा है और तुम उसमें कूदकर जलने वाले पतिंगे हो। तुमने अपनी आत्मा को यम के घर में झोंक दिया है ।।५।
जैसे निम के कीड़ों को नीम ही प्यारा लगता है, वैसे मूढ़ जीव विषयों को, जो विषतुल्य है, अमृत कहता है ।।६।।
विषयों के भोगों में क्या लाभ होगा। उसमें क्षणिक इंद्रिय-सुख का भ्रम-जन्य लाभ दिखता है, किन्तु आत्मशांति रूप मूलधन खो जाता है ।।७।।
अविवेकी आदमी विष और अमृत को एक ही में मिला देता है ; किन्तु जिसको सही परख हो जाती है वह विषयों को विष के समान समझकर उन्हें त्याग देता है ।।८।।
तथाकथित ऊंच और नीच जातियों में पैदा होने से क्या हुआ ; बिना सत्यासत्य परख हुए जगत के बड़े-बड़े बुद्धिमान और विद्वान भी मोह-सागर में डूबे रहे हैं ।।९।।
विवेकहीन आदमी सद्गुणों का क्या विचार करेगा ! उसे तो विषयों की लालच और आशा लगी रहती है ।।१०।।
पहले के लोग मर चुके हैं, तुम भी आज-कल में मर जाओगे। मुये चाम का ही तो ढोल बनकर बजता है। संसार तो स्वप्न में मिले हुए मित्र की तरह एक धोखा है। मनुष्य के मर जाने के बाद उसके विषय में अच्छी और बुरी चर्चा ही, कुछ दिनों के लिए उसकी पहचान रह जाती है ।।११।।