Are you looking for the interpretation of Kabir Bijak Ramaini 3 in Hindi, if yes then you have come to the right place.In this post, Sadhguru Kabir Saheb’s Bijak Ramani has been presented with a complete explanation and example. Which is the ultimate test of knowledge.The vast ocean of Amritvani of Kabir Sahib is “Bijak”. The first episode in Bijak is Ramaini. the explanation of kabir Saheb bijak ramaini is Following –
व्याख्याकार
Sadguru abhilash Saheb
कबीर बीजक रमैनी 3
सृष्टि कहां से हुई और राम कौन है?
Starting of Kabir Bijak Ramaini 3
प्रथम आरम्भ कौन को भयऊ।
दूसर प्रगट कीन्ह सो ठयऊ।। १ ।।
प्रगटे ब्रह्मा विष्णु शिव शक्ति।
प्रथमें भक्ति कीन्ह जीव उक्ति।। २।।
प्रगटे पवन पानी औ छाया।
बहु विस्तार के प्रगटी माया।। ३।।
प्रगटे अण्ड पिण्ड ब्रह्मण्डा।
पृथ्वी प्रगट कीन्ह नौखण्डा।। ४ ।।
प्रगटे सिद्ध साधक सन्यासी।
ई सब लागि रहे अविनाशी।।५।।
प्रगटे सुर नर मुनि सब झारी।
तेहि के खोज परे सब हारी।। ६।।
❤️साखी❤️
जीव शिव सब प्रगटे, वै ठाकुर सब दास।
कबीर और जाने नहीं, एक राम नाम की आश।।३।।
kabir Bijak Ramaini 3 के शब्दार्थ
आरम्भ = उत्पत्ति। ठयऊ = स्थान। शक्ति = माया, नारी। उक्ति = कथन,अंदाज,कल्पना। छाया = अग्नि,अमर कोश में छाया के चार अर्थ हैं—सूर्य प्रिया, कांति, प्रतिबिंब तथा छांह (३/३/१५८)। नौखण्डा = इंद्र, नाग, वरुण, गभिस्त, ताम्र, ब्रह्म, भरत, सौम्य एवं कसेरू खंड। दुसरे प्रकार से नौ खंड इस प्रकार गिनाये जाते हैं—कुरु, हिरण्यक, रम्यक, इला, हरि, केतुमाल, भद्राश्व, किन्नर तथा भरत खंड। झारी = सब-के-सब।
Kabir Bijak Ramaini 3 का भावार्थ
पहले-पहल किसकी उत्पत्ति हुई ? दूसरा प्रश्न यह है कि वह कौन जगह है जहां पर ठहरकर किसी ने सृष्टि की ? ।। १ ।।
ब्रह्मा, विष्णु तथा महादेव शक्ति (किसी नारी) से पैदा हुए और जीव पूर्व कथनानुसार अपने अनुमान से भक्ति करने लगे ।।२।।
पवन, पानी और अग्नि प्रकट हुए। बहुत विस्तार से माया प्रकट हुई।।३।।
अंड, पिंड और ब्रह्मांड प्रकट हुए तथा नौ खंडों के सहित पृथ्वी प्रकट हुई।।४।।
सिद्ध, साधक, सन्यासी, सुर, नर, मुनि आदि जितने संसार में जन्म लिए, सब किसी अविनाशी तत्त्व की खोज में लगे रहे, और उसी में थक हारकर परेशान हो गये।। ५-६।।
साखी 3 का भावार्थ
जीव से ही शिव (ईश्वर) देवादि की कल्पना प्रकट हुई। पीछे वे कल्पित पदार्थ ही स्वामी बन बैठे और कल्पनाकर्ता जीव उनके दास बन गये। कबीर साहेब कहते हैं कि मैं और कुछ नहीं जानता, मुझे केवल उस आत्म-स्वरूप का ही आशा-भरोसा है, जिसका नाम राम है अर्थात मेरा निरंतर विश्राम स्वस्वरूराम में ही है ।।३।।
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